- Pooja Jain
Tumhari Peeth Par Likha Mera Naam
क्या आप मानते हैं किताबें अपना पाठक चुनती हैं ?
पहले पहल मैं भी इसपर इतना विश्वास नहीं करती थी, पर लेखिका सुषमा गुप्ता जी, हफ्ता भर पहले तक जिनके नाम तक से भी मैं नावाकिफ थी उनकी किताब "तुम्हारी पीठ पर लिखा मेरा नाम" जब मेरे हाथ आयी तो मेरे विश्वास को एक नींव मिल गयी। कमाल की बात तो ये हुई की हफ्ते भीतर ही पाठक और लेखक के बीच ऐसा तारतम्य स्थापित हो गया है की लगता ही नहीं की अनजान हैं।
इस किताब से और लेखिका से परिचय का सारा श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो हैं आशुतोष दद्दा। उनकी पोस्ट से लगातार जुड़े रहने के कारण ही मुझे इस पुस्तक के बारे में पता चला ,अब दद्दा खुद शब्दों के धनी हैं तो बिना एक क्षण गवाएं मैंने पुस्तक मंगाई। इसका कवर पेज तो खैर मुझे आकर्षित कर ही रहा था ,ऊपर से इसका लिटो फेस्ट में चुना जाना तो कोई कारण शेष नहीं बचता था इसको न पढ़ने का।और जब किताब अपने साथ छोटा सा दिल और सुषमा जी के हस्ताक्षर के साथ पहुंची तो ख़ुशी का एक और कारण बन गया (हस्ताक्षरित पुस्तक पाठक की सबसे बड़ी पूँजी :) )
ये तो हुई बात से पहले की बात ,अब बात करते हैं तुम्हारी पीठ पर लिखा मेरा नाम की। ये 15 कहानियों का एक संग्रह है और हर कहानी मन मष्तिक के उन अँधेरे कोनों तक पहुँचती है जिनके जाले हम कभी साफ़ नहीं करते या साफ़ करना जरुरी नहीं समझते।
तुमने कभी बाहर खड़े होकर खुद को पिंजरे में बंद देखा है ? दुनिया ऐसी ही है , और ये कहानियां भी ...
कहानियां थोड़ी डार्क हैं इसलिए विचलित भी करती हैं। पर सच कहाँ शहद सी मिठास लिए होता है उसका स्वाद तो कड़वे नीम सा होता है। नीम जैसे सेहत के लिए अच्छा होता है वैसे ही उन सचाईओं से वाकिफ होना जिन्हें हम कालीनों के नीचे दबा छुपाकर रखते हैं उनसे वाकिफ होना भी सेहत के लिए दवा का काम करता है। खुद से खुद का वाबस्ता कराती हैं ये कहानियां। जैसे की लेखिका ने पहली ही कहानी में कहा है इन कहानियों में रूह की परतें उखड़ती जाएंगी।
हर कहानी एक महिला पात्र पर केंद्रित है और गुजरे हुए कल को आज से जोड़ती है। इन कहानियों में क़यामत के दिन पीठ पर लिखे जाने वाले नाम किसी अघोरी के शाप की तरह पूछते है की प्यार करते हो मुझसे ? और फिर ख्वाबों के बीच टूटी नींद में चाँद रात का शैतान यस मैडम ,ओके मैडम ,लव यु मैडम कहता हुआ अपने बदलते हुए हाथों के सफर में एक विंनर की तरह किसी रूई के फाहे सी चरित्रहीन लड़की की देह में निस्तारण करके उसे शह और मात देते हुए कहता है तुम मेरी प्रेमिका हो ,तुम्हारे पास कोई दास्ताँ है ?
मनोवैज्ञानिक ढंग से बुनी हुई कहानियां किसी की पीठ पर अपना उँगलियों से लिखा नाम खोजती नजर आएँगी क्यूंकि उंगलियों से लिखे नाम कभी मिटाये नहीं जा सकते।
हर कहानी आपके हर मनोभाव को जाग्रत करने में कोई कसर नहीं छोड़ती। डर ,गुस्सा,प्यार ,ईर्ष्या ,अकेलापन ,सुंदरता आदि आदि इनके रंग हर कहानी में मिलेंगे। फिर भी ये कहानियां इंद्रधनुष के खुशनुमा दिखने वाले सात रंगो में नहीं जीवन की स्याह काली हकीकतों से भरी हुई हैं।कोई भी कहानी दोबारा पढ़ने पर कोई नया रंग आपको दिखेगा।
कहानियां ज्यातातर आत्मसंवाद रूप में लिखी गयी हैं और पात्रों की भाषा और चरित्र चित्रण एकदम उम्दा। एक घटनाकर्म कैसे जिंदगी बदल देता है बहुत अच्छे से दिखाती हैं बिल्कुल चलचित्र की तरह।
अगर कहानियां पढ़ते हुए शरीर ठंडा या गर्म होने लगे , पैरों के पंजे मुड़ने लगे , माथे पर पसीना आने लगे या पेट में कुछ ऐठन जैसा लगे तो चिंता मत कीजिये आप बीमार नहीं हैं, लेखिका के कुशल कथानक में बंध चुके हैं।
किरदार और जगह इतनी ख़ूबसूरती से पिरोये गए हैं की आप खुद को वहीँ महसूस करेंगे चाहे जादूगरनी का कमरा हो या पहाड़ों में नदी और वहां लगा टेंट।
एक खास घटनाक्रम का जिक्र जरूर करुँगी , एक कहानी में जहाँ एक लड़की को पेड़ से टांगा जाता है , मेरी गर्दन अपने आप ऊपर हो गयी और कईं घण्टे मैं बेचैन रही थी। ये सिर्फ एक उदाहरण है।
लेखिका ने किरदारों को नाम देने का उपक्रम नहीं किया ये भी एक कारण है की आप खुद को उनके ज्यादा करीब पाते हैं क्यूंकि नाम में अक्सर लोग पहचान बना लेते हैं। इन कहानियों में आप खुद एक किरदार बन जाते हैं।
भाषा शैली इतनी जबरदस्त है की क्या कहूं सिर्फ कुछ बानगियाँ पेश करती हूँ :
"अक्सर मासूमियत , छल सहते-सहते एक रोज़ कुटिल हो जाती है। इसलिए भी कुटिलता को मासूमियत पर प्यार आता है। "
"सबके पास अपने सवालों के जवाब खुद ही होते हैं बशर्ते हम सच स्वीकारने की हिम्मत रखते हों "
"जिस प्रेम की कोई वजह ढूंढी जा सके , वह फिर प्रेम ही कहाँ हुआ "
"दिल दर्द से बेहाल हो तो आंसू भी सुकून का क़तरा परोसने से कतराते हैं "
"औरत को जब सच में औरत पर प्यार आये तो समझना उसमें उस पल ईश्वर झलकता है "
"नींद भी कमाल की शय है ,पलों में कभी सालों पीछे ले जाती है और कभी उतना आगे जहाँ तक आदमी की सोच जा सके "
ये सिर्फ दो या तीन कहानियों में से हैं , ऐसा बहुत कुछ मिलेगा आपको इस कहानी संग्रह में।छोटी छोटी चीजें जैसे लूडो ,खिड़की ,सड़क ,सोडा बोतल ,पहिया खरगोश इत्यादि इन सबका प्रतीकात्मक इस्तेमाल बेहद खूबसूरती के साथ किया है। कहीं कहीं काव्यात्मक और शेरो शायरी का इस्तेमाल कहानियों को और रूचिकर बना रहा है।
बेबाक लेखनी का एक ऐसा उदाहरण जो समाज की सोच को दर्शाता है ,औरतों की स्याह हकीकत को बयां करता है। प्रेम का अलग ही रंग देखने को मिलेगा इस संग्रह में।
तो इंतज़ार किस बात का अभी पढ़िए ,आपके समय की बचत के लिए लिंक भी दे देते हैं। मेरा वादा है आप निराश नहीं होंगे।
इतनी सुन्दर रचना के लिए लेखिका को बधाई।
पाठकों से गुजारिश: एक सिटींग में बिलकुल भी मत पढियेगा वर्ना मजा कम हो जाएगा। जैसे खाने के क्रम में पहले खाने को देखना ,फिर उसकी महक लेना और उसके बाद धीरे धीरे चबाकर शामिल है ; इसको पढ़ते हुए पहले कुछ वक़्त कवर की ख़ूबसूरती देखिये जो कहानियों में आने वाले स्वाद का परिचय देगा और उसके बाद समय लेकर पढ़िए ,क्योंकर कहानियां ऐसे ही लिखी भी गयी हैं। आत्मचिंतन का मौका जरूर दीजिये अपने आप को पढ़ते हुए।
कहानियां पढ़कर मुझे जो लगा वो कुछ ऐसा है :

क्यों जब तू चला जाता है, तेरे गहरे साये के पीछे बदहवास दौड़ती हूँ मैं,
क्यों तेरे बदन के कस्तूरी नशे में अब तक चूर हूँ मैं,
क्यों नहीं समझ आता कि ये हकीकत नही मृगमरीचिका है , ये सिर्फ खयालों का भ्रमजाल है जिसमे उलझी हुई हूँ मैं,
क्यों कोई पानी के ठंडे छिटों से मेरे इस भ्रम को नही तोड़ता,
क्यों कोई शोर मेरी इस गहरी नींद को नही खोलता,
शायद इसी को जागती आंखों से ख्वाब देखना कहते हैं!!
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